Saturday, January 15, 2011

need for life

जीवन और इच्छाएं

!! हरेकृष्ण हरेकृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ! हरेराम हरेराम राम राम हरे हरे !!
मित्रो प्रस्तुत शीर्षक पर लिखते समय सर्व-प्रथम मन में यह विचार आ रहा है कि जीवन के कारण इच्छा हैं या इच्छाओं के कारण जीवन है ! 
सीधे-सीधे हमें बोध होता है कि जीवन है तो इच्छा हैं बिन जीवन कैसी इच्छा !
पर मैंने इतिहास में-पुराणों में एवं वर्त्तमान जीवन में भी अनेकों बार अनुभव किया है कि जीवन का अर्थ इच्छाओं के अधीन होता है !  
जैसे किसी व्यक्ति की अधिकतर इच्छा पूर्ति होने पर वह तथा दूसरे उसे सुखीजीवन समझते हैं और जिनकी इच्छाएं अपूर्ण हैं वे जग में वेचारे-अभागे-दुखीजीवन कहलाते हैं ,अधिकांसतः आत्महत्या जैसे कुकृत्यों के पीछे भी जीवन से ऊँची अभिलाषाएं जैसी धारणा प्रमाणित होती है ! 
और पुरातनकाल-इतिहास से वर्त्तमानकाल-आज तक दूसरे के जीवन से खेल कर स्वयं की लालसा पूर्ति करना भी तो इच्छा के अधीन जीवन को चरितार्थ करता है !
इतिहास में अलक्षेन्द्र-महान से लेकर अब तक अनेकों उदाहरण हैं  ! अलक्षेन्द्र-महान मेरी समझ से उसे महान टाइटल उसे इच्छाओं के अधीन जीवन को दाव पर रखके कार्य-युद्ध करने के लिए दिया गया है !  लोग कहेंगे क्या भाई मूर्खों जैसी बात करते हो अलक्षेन्द्र विजेता था ..तो उसके द्वारा की गयी विजय मानवता के लिए थी विश्व बंधुत्व के लिए थी क्या ? यह उसके व्यक्तिगत इच्छाओं-अभिलाषाओं के अधीन एक साम्राज्यबाद था ! इस महानता से कोई भाई-चारा, प्रेम-आदर्श, मानवता-स्थापित हुआ ? उल्टे लोगों में आपस में लड़कर जीतने की कामना जाग्रत हुई जो कालांतर में और पुष्ट हो कर जेहाद-आतंकबाद-नक्सलबाद-गुंडागीरी-दबंगता-चोर-डकैत इत्यादि के रूप में पुष्ट हो कर मानवता के लिए अभिशाप बनी ! पुराणों में भी विभिन्न दैत्य-दानवों यहाँ तक देवताओं ने भी व्यक्तिगत तृष्णा-स्वार्थ-अभिलाषाओं के अधीन अनेकों कृत्य किये जिनका अन्त में परिणाम दुखद-विनाश ही रहा !
आज भी तृष्णाओं के चलते युद्ध हो रहे हैं-हत्या हो रही हैं ! व्यक्ति-व्यक्ति का शोषण कर रहा है ! 
अतः सिद्ध है कि इच्छा-तृष्णा जीवन से बड़ी हैं !
निज अभिलाषाओं-पिपासाओं के चलते जगत में जीवन का कोई अर्थ नहीं !
"बड़ी मछली छोटी को खाय","जाकी लाठी वाकी भैंस","अपना खून तो खून दूसरे का खून पानी" जैसी लोकोक्तियाँ और भी सरलता से मेरे अभिमत को व्यक्त करतीं हैं ! 
मित्रो भारतीय संस्कृति में शिक्षा "इच्छा से ऊपर जीवन के महत्व" की है ! इसी कारण कोई भी "सनातनी" कहीं आक्रमण करने नहीं गया ,किसी को लूटा या काटा नहीं ! 
यही कारण था की विश्व विजेता अलक्षेन्द्र भी इस पतित-पावनी धरा पर आकर युद्ध-हत्या आदि से बिमुख हो अपने देश के लिए लौट पड़ा ! अलक्षेन्द्र ने सोचा, "जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी-सो नर अवस नरक अधिकारी " "क्यों व्यर्थ में अपनी जिजीविषाओं के चलते में निज सेना का दोहन करता रहा ! अपने राष्ट्र-जन की सुध नहीं ली ! क्या ये जीते देश या धन-सम्पदा मेरे देश को सुखी रख सकेंगे !" "इस भारत भूमि से सीखे आचार-विचार-दर्शन जो मेरे गुरु 'अरस्तु' ने मुझे सीखने-समझने के लिए पहले ही मार्गदर्शित किया था एक अच्छा राजा बनाने में सहायक होंगे ! अन्यथा प्रजा "कोऊ नृप होई हमें का हानि " का अनुसरण कर मुझे एक यादगार राजा नहीं मानेगी !" 
हमारी संस्कृति सम्राट अशोक को युद्ध जीतने पर नहीं,युद्ध त्यागने पर ,धर्मं की शरण आने पर महान बनाती है ! 
परन्तु साबधान संसार में सज्जनों की अपेक्षा दुष्टों की संख्या बल अधिक होने से हमेशा पुनः-पुनः ये इच्छाबादी अपनी शक्ति एकत्र कर जीवन बादियों को खदेड़ देते हैं ! 
आपको पता ही है -इतिहास प्रमाण है कि किस प्रकार हम शांत-सर्वसुख की कामना युक्त भारतवासियों को तुर्क-अफगान-मुस्लिम-अंग्रेज इत्यादि लुटेरों ने लूटा-मारा-काटा है ! और आज भी भारत भूमि को टुकड़ों में बांटकर फिर से आतंक-नेतागीरी-राजनीति इत्यादि के द्वारा पुनः जाति-जाति,भाषा-भाषा एवं व्यक्ति-व्यक्ति के रूप में बांटकर इस महान राष्ट्र-सभ्यता-संस्कृति को व्यक्तिगत क्षुधा के लिए नष्ट किये जाने की योजना है !
खैर मुझे अपने बिषय पर वापस आना है ये सब कुचक्र किसी अन्य शीर्षक में व्यक्त करेंगे यहाँ हमारा ध्यान जीवन एवं इच्छा दोनों में कोंन आधार है यह तलाश करना है ! 
अब तक हम प्रमाण दे चुके हैं "पानी मंहगा सस्ता खून " यानि इच्छाएं जीवन पर भारी हैं, इच्छाओं के वशीभूत लोग विभिन्न प्रकार के नशा-ड्रग्स इत्यादि का सेवन कर जीवन की उपेक्षा करते हैं , विभिन्न प्रकार के स्टंट जो अधिकांशतः जान लेवा होते हैं जैसे तेज वाहन चालन "अपना जीवन तो जाये या बचे कोई परवाह नहीं दूसरे भी कुचल जाएँ मेरा क्या " , आलस-प्रमाद इत्यादि के वशीभूत हो लोग जीवन के लिए प्रधान आवश्यक समय को यों ही नष्ट करते हैं !
सबको पता है "कर्म प्रधान विश्व रचि राखा-जो जसि करिअ सो तसु फल चाखा !!" फिर भी कुकर्म किये जाते हैं ! 
आश्चर्य है भगवान की सत्ता पर विश्वास है पर जीवन से ऊँची निज तृष्णायें कैसे ? जबकि स्पष्ट है 
"जहाँ राम तहां काम नहिं-जहाँ काम नहिं राम ! तुलसी कैसे रहि सके रवि रजनी एक ठाम !! "  
यानि जहाँ भगवान हैं वहाँ इच्छा-तृष्णा-कामना इत्यादि दोष नहीं और जहाँ दोष विद्यमान हैं समझलो वहाँ ईश्वर पर-राम पर विश्वास का अभाव है
मेरा अपना मत है की सदैव जीवन-जीवन है ,भगवान का हमें दिया सुन्दरतम उपहार है ,भगवान ही प्रत्येक प्राणी में विराजमान हैं यथा "ईश्वर अंश जीव अविनाशी -चेतन अमल सहज सुख रासी !!" "सियराम मय सब जग जानि -करहुँ प्रणाम जोर जुग पानी !!"
भगवद गीता में "ममैवांशो" कहकर  भगवान कृष्ण प्रत्येक जीवन को अपना स्वरुप सुझा रहे हैं !
अतः यदि जीवन से ऊँची इच्छायें हैं तो कैसी कृष्ण-उपासना-कैसा राम-प्रेम ! 
यद्धपि संसार में भोगवादी अधिक हैं जिनके लिए जीवन का कोई मूल्य नहीं परन्तु अन्त में सभी को इस जगत से अलविदा होना है ! और उस समय जीवन ही प्रत्येक तृष्णा से ऊपर सिद्ध होता है ,जीवन मूल्य का सही अर्थ समझ में आता है ! और इच्छाओं की परतंत्रता प्रतीत होती है ! ...
मेरा मानना है कि जीवन आधार है ! इच्छाएं इसकी शाखा हैं इच्छा जीवन के लिए हैं जैसे खान-पीना-सोना-जगाना जीवन के लिए हैं ,जीवन इनके लिए नहीं इसीप्रकार हमारे स्वार्थ सबके साथ मिलकर हैं दूसरे को खाकर नहीं "ईश्वरः सर्व भूतानाम "  "सर्वं खल्मिदम ब्रह्मः "जैसे वेद वाक्यों  के साथ "सर्वे भवन्तु सुखिनः "जैसी हमारी कामना हो ! तभी एक सुखी संसार है !
एक सुखी जगत ही हमारे सुख संबर्धित कर सकता है दुखी जगत तो खुद कंगाल होगा फिर कैसे हमें सुख देसकेगा !
सबके साथ मिलकर उन्नति ही सच्ची  उन्नति है ! 
कल्पना करो यदि इस संसार में अकेले केवल एक व्यक्ति वचा हो तो क्या वह कभी सुखी हो सकेगा ? क्या उसके लिए इच्छाएं जीवन से अधिक होंगी ? 
अब सोचो केवल दो व्यक्ति संसार भर में हों तो क्या वे एक दूसरे के जीवन से ऊपर इच्छाओं को रख पाएंगे ? 
तब केवल "तेरी खुसी में ही मेरी खुसी है " का भाव रहेगा !
अतः सिद्ध है जीवन तृष्णाओं से बहुत उच्च है !
क्षण मात्र के लिए  तृष्णा जीवन पर भारी प्रतीत होती हैं पर जीवन सदैव किसी भी लालसा से अधिक है यह सत्य है एवं सत्य कभी नष्ट नहीं होता ! 
हो सकता है सत्य रूपी सूर्य को कुछ समय के लिए असत्य रूपी बादल इसे ढक लें  परन्तु सत्य रूपी सूर्य का कुछ नहीं बिगड़ता समय की हवा के साथ असत्य रूपी बादल उड़ जाते हैं पुनः हमें तेज रूपी सत्य  प्राप्त होजाता है ! 
मित्रो आप सब अपने अमूल्य विचारों के साथ यहाँ आमंत्रित हैं कृपया उपरोक्त विवेचन जीवन और इच्छाएं पर अपनी लेखनी चलाकर हमें पोस्ट करें 
...राधे-राधे...