मित्रो प्रस्तुत शीर्षक पर लिखते समय सर्व-प्रथम मन में यह विचार आ रहा है कि जीवन के कारण इच्छा हैं या इच्छाओं के कारण जीवन है !
सीधे-सीधे हमें बोध होता है कि जीवन है तो इच्छा हैं बिन जीवन कैसी इच्छा !
पर मैंने इतिहास में-पुराणों में एवं वर्त्तमान जीवन में भी अनेकों बार अनुभव किया है कि जीवन का अर्थ इच्छाओं के अधीन होता है !
जैसे किसी व्यक्ति की अधिकतर इच्छा पूर्ति होने पर वह तथा दूसरे उसे सुखीजीवन समझते हैं और जिनकी इच्छाएं अपूर्ण हैं वे जग में वेचारे-अभागे-दुखीजीवन कहलाते हैं ,अधिकांसतः आत्महत्या जैसे कुकृत्यों के पीछे भी जीवन से ऊँची अभिलाषाएं जैसी धारणा प्रमाणित होती है !
और पुरातनकाल-इतिहास से वर्त्तमानकाल-आज तक दूसरे के जीवन से खेल कर स्वयं की लालसा पूर्ति करना भी तो इच्छा के अधीन जीवन को चरितार्थ करता है !
इतिहास में अलक्षेन्द्र-महान से लेकर अब तक अनेकों उदाहरण हैं ! अलक्षेन्द्र-महान मेरी समझ से उसे महान टाइटल उसे इच्छाओं के अधीन जीवन को दाव पर रखके कार्य-युद्ध करने के लिए दिया गया है ! लोग कहेंगे क्या भाई मूर्खों जैसी बात करते हो अलक्षेन्द्र विजेता था ..तो उसके द्वारा की गयी विजय मानवता के लिए थी विश्व बंधुत्व के लिए थी क्या ? यह उसके व्यक्तिगत इच्छाओं-अभिलाषाओं के अधीन एक साम्राज्यबाद था ! इस महानता से कोई भाई-चारा, प्रेम-आदर्श, मानवता-स्थापित हुआ ? उल्टे लोगों में आपस में लड़कर जीतने की कामना जाग्रत हुई जो कालांतर में और पुष्ट हो कर जेहाद-आतंकबाद-नक्सलबाद-गुंडागीरी-दबंगता-चोर-डकैत इत्यादि के रूप में पुष्ट हो कर मानवता के लिए अभिशाप बनी ! पुराणों में भी विभिन्न दैत्य-दानवों यहाँ तक देवताओं ने भी व्यक्तिगत तृष्णा-स्वार्थ-अभिलाषाओं के अधीन अनेकों कृत्य किये जिनका अन्त में परिणाम दुखद-विनाश ही रहा !
आज भी तृष्णाओं के चलते युद्ध हो रहे हैं-हत्या हो रही हैं ! व्यक्ति-व्यक्ति का शोषण कर रहा है !
अतः सिद्ध है कि इच्छा-तृष्णा जीवन से बड़ी हैं !
निज अभिलाषाओं-पिपासाओं के चलते जगत में जीवन का कोई अर्थ नहीं !
"बड़ी मछली छोटी को खाय","जाकी लाठी वाकी भैंस","अपना खून तो खून दूसरे का खून पानी" जैसी लोकोक्तियाँ और भी सरलता से मेरे अभिमत को व्यक्त करतीं हैं !
मित्रो भारतीय संस्कृति में शिक्षा "इच्छा से ऊपर जीवन के महत्व" की है ! इसी कारण कोई भी "सनातनी" कहीं आक्रमण करने नहीं गया ,किसी को लूटा या काटा नहीं !
यही कारण था की विश्व विजेता अलक्षेन्द्र भी इस पतित-पावनी धरा पर आकर युद्ध-हत्या आदि से बिमुख हो अपने देश के लिए लौट पड़ा ! अलक्षेन्द्र ने सोचा, "जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी-सो नर अवस नरक अधिकारी " "क्यों व्यर्थ में अपनी जिजीविषाओं के चलते में निज सेना का दोहन करता रहा ! अपने राष्ट्र-जन की सुध नहीं ली ! क्या ये जीते देश या धन-सम्पदा मेरे देश को सुखी रख सकेंगे !" "इस भारत भूमि से सीखे आचार-विचार-दर्शन जो मेरे गुरु 'अरस्तु' ने मुझे सीखने-समझने के लिए पहले ही मार्गदर्शित किया था एक अच्छा राजा बनाने में सहायक होंगे ! अन्यथा प्रजा "कोऊ नृप होई हमें का हानि " का अनुसरण कर मुझे एक यादगार राजा नहीं मानेगी !"
हमारी संस्कृति सम्राट अशोक को युद्ध जीतने पर नहीं,युद्ध त्यागने पर ,धर्मं की शरण आने पर महान बनाती है !
परन्तु साबधान संसार में सज्जनों की अपेक्षा दुष्टों की संख्या बल अधिक होने से हमेशा पुनः-पुनः ये इच्छाबादी अपनी शक्ति एकत्र कर जीवन बादियों को खदेड़ देते हैं !
आपको पता ही है -इतिहास प्रमाण है कि किस प्रकार हम शांत-सर्वसुख की कामना युक्त भारतवासियों को तुर्क-अफगान-मुस्लिम-अंग्रेज इत्यादि लुटेरों ने लूटा-मारा-काटा है ! और आज भी भारत भूमि को टुकड़ों में बांटकर फिर से आतंक-नेतागीरी-राजनीति इत्यादि के द्वारा पुनः जाति-जाति,भाषा-भाषा एवं व्यक्ति-व्यक्ति के रूप में बांटकर इस महान राष्ट्र-सभ्यता-संस्कृति को व्यक्तिगत क्षुधा के लिए नष्ट किये जाने की योजना है !
खैर मुझे अपने बिषय पर वापस आना है ये सब कुचक्र किसी अन्य शीर्षक में व्यक्त करेंगे यहाँ हमारा ध्यान जीवन एवं इच्छा दोनों में कोंन आधार है यह तलाश करना है !
अब तक हम प्रमाण दे चुके हैं "पानी मंहगा सस्ता खून " यानि इच्छाएं जीवन पर भारी हैं, इच्छाओं के वशीभूत लोग विभिन्न प्रकार के नशा-ड्रग्स इत्यादि का सेवन कर जीवन की उपेक्षा करते हैं , विभिन्न प्रकार के स्टंट जो अधिकांशतः जान लेवा होते हैं जैसे तेज वाहन चालन "अपना जीवन तो जाये या बचे कोई परवाह नहीं दूसरे भी कुचल जाएँ मेरा क्या " , आलस-प्रमाद इत्यादि के वशीभूत हो लोग जीवन के लिए प्रधान आवश्यक समय को यों ही नष्ट करते हैं !
सबको पता है "कर्म प्रधान विश्व रचि राखा-जो जसि करिअ सो तसु फल चाखा !!" फिर भी कुकर्म किये जाते हैं !
आश्चर्य है भगवान की सत्ता पर विश्वास है पर जीवन से ऊँची निज तृष्णायें कैसे ? जबकि स्पष्ट है
"जहाँ राम तहां काम नहिं-जहाँ काम नहिं राम ! तुलसी कैसे रहि सके रवि रजनी एक ठाम !! "
यानि जहाँ भगवान हैं वहाँ इच्छा-तृष्णा-कामना इत्यादि दोष नहीं और जहाँ दोष विद्यमान हैं समझलो वहाँ ईश्वर पर-राम पर विश्वास का अभाव है !
मेरा अपना मत है की सदैव जीवन-जीवन है ,भगवान का हमें दिया सुन्दरतम उपहार है ,भगवान ही प्रत्येक प्राणी में विराजमान हैं यथा "ईश्वर अंश जीव अविनाशी -चेतन अमल सहज सुख रासी !!" "सियराम मय सब जग जानि -करहुँ प्रणाम जोर जुग पानी !!"
भगवद गीता में "ममैवांशो" कहकर भगवान कृष्ण प्रत्येक जीवन को अपना स्वरुप सुझा रहे हैं !
अतः यदि जीवन से ऊँची इच्छायें हैं तो कैसी कृष्ण-उपासना-कैसा राम-प्रेम !
यद्धपि संसार में भोगवादी अधिक हैं जिनके लिए जीवन का कोई मूल्य नहीं परन्तु अन्त में सभी को इस जगत से अलविदा होना है ! और उस समय जीवन ही प्रत्येक तृष्णा से ऊपर सिद्ध होता है ,जीवन मूल्य का सही अर्थ समझ में आता है ! और इच्छाओं की परतंत्रता प्रतीत होती है ! ...
मेरा मानना है कि जीवन आधार है ! इच्छाएं इसकी शाखा हैं इच्छा जीवन के लिए हैं जैसे खान-पीना-सोना-जगाना जीवन के लिए हैं ,जीवन इनके लिए नहीं इसीप्रकार हमारे स्वार्थ सबके साथ मिलकर हैं दूसरे को खाकर नहीं "ईश्वरः सर्व भूतानाम " "सर्वं खल्मिदम ब्रह्मः "जैसे वेद वाक्यों के साथ "सर्वे भवन्तु सुखिनः "जैसी हमारी कामना हो ! तभी एक सुखी संसार है !
एक सुखी जगत ही हमारे सुख संबर्धित कर सकता है दुखी जगत तो खुद कंगाल होगा फिर कैसे हमें सुख देसकेगा !
सबके साथ मिलकर उन्नति ही सच्ची उन्नति है !
कल्पना करो यदि इस संसार में अकेले केवल एक व्यक्ति वचा हो तो क्या वह कभी सुखी हो सकेगा ? क्या उसके लिए इच्छाएं जीवन से अधिक होंगी ?
अब सोचो केवल दो व्यक्ति संसार भर में हों तो क्या वे एक दूसरे के जीवन से ऊपर इच्छाओं को रख पाएंगे ?
तब केवल "तेरी खुसी में ही मेरी खुसी है " का भाव रहेगा !
अतः सिद्ध है जीवन तृष्णाओं से बहुत उच्च है !
क्षण मात्र के लिए तृष्णा जीवन पर भारी प्रतीत होती हैं पर जीवन सदैव किसी भी लालसा से अधिक है यह सत्य है एवं सत्य कभी नष्ट नहीं होता !
हो सकता है सत्य रूपी सूर्य को कुछ समय के लिए असत्य रूपी बादल इसे ढक लें परन्तु सत्य रूपी सूर्य का कुछ नहीं बिगड़ता समय की हवा के साथ असत्य रूपी बादल उड़ जाते हैं पुनः हमें तेज रूपी सत्य प्राप्त होजाता है !
मित्रो आप सब अपने अमूल्य विचारों के साथ यहाँ आमंत्रित हैं कृपया उपरोक्त विवेचन जीवन और इच्छाएं पर अपनी लेखनी चलाकर हमें पोस्ट करें
...राधे-राधे...
ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं !
ReplyDeleteजग में केवल माया दरशे !
अन्य नहीं कछु रीति नीति है !
उपदेशें वनें सिद्ध-सुजान !
अपनी-अपनी कूट नीति है !!
स्वार्थ बोले माया डोले !
रचे कुचाल पाप के फंदे !
पर उपकार कठिन भयो दुष्कर !
कायरता के मलिन पुलंदे !!
योग-ध्यान सब ढोंग में दर्शें !
सत्य छिपे अब झूंठ के धुन्धे !!
झूंठे राग गाय करें भक्ति !
भ्रम ही करें कहें भक्त हैं वन्दे !!
उपदेशें जन में मायावी !
करें रात दिन छल के धंधे !!
बगुला भगत सी रीति इनकी !
कर्म महा हिंसक अरु गंदे !!
कोई कहे देश कोई कहे धर्मं !
चतुर महा ये शिकार के छंदे !!
वाक जाल में लूट लें सब को !
निज स्वार्थ वस कुटिल परिंदे !!
भगवानहु को बेच दें पापी !
रेतें गले चलाय कें रंदे !!
जो मूरख मिल जाय इन्हें जब !
चेला करि पहिनावें फंदे !!
कंठी-माला अरु गुरु निष्ठां !
व्यर्थ है सब ये भ्रम के पण्डे !!
कहें गोविन्द करें तृप्त इन्द्री !
मठ इनके भये पाप के अड्डे !!
विलासिता भोगें संयमी कहावें !
ये सब निश्चर जाति के वन्दे !!
"स्वीट राधिका" कहे जन-मानष से !
धुनों इनको अब लेके डंडे !!
ये शत्रु मानवता के हैं ! ये शत्रु भारत देश के हैं ! ये शत्रु धर्मं-संस्कृति के हैं ! इनका सामाजिक बहिष्कार स्वस्थ्य समाज के लिए अनिवार्य है !
आओ संकल्प लें ऐसे धार्मिक-आध्यात्मिक-राजनैतिक लुटेरों को इनकी विलासिता-सत्ता से उतार फेंकें - सनातन धर्मं -सनातन संस्कृति -श्रीमदभगवद गीता के द्वारा "महाभारत" रूपी धर्मं युद्ध का परम आदर्श-अनिवार्य भगवद सन्देश प्रदान कर रही है !यदि आपकी इस महाभारत में योद्धा बन संकल्पित होने की इच्छा है तो प्रस्तुत नोट को अपने सभी मित्रों को पोस्ट करें एवं ब्लॉग "राधे-राधे " से निम्नांकित एड्रस लिंक पर क्लिक कर फोलो करें
radhey-radhey
my country-my wishes
sweetieradhe.blogspot.com
radhikagautam.blogspot.com
...राधे-राधे..हरेकृष्ण !!
क्या आपको ये देश आज स्वतंत्र-आत्मतुष्ट दिखता है ? क्यों गुंडे-बदमाश उच्च पदों पर स्थापित हैं ? क्यों एक ही परिवार के चारों ओर देश की राजनीति घूम जाति है ? क्यों पुलिस बिट्रिश काल की तरह जनता की सेवक न हो कर भक्षक है ?क्यों भारतीय धन स्विटजर-लेंड की बैंकों में है ? क्यों आज जनता बेरोजगार एवं गरीब है ? क्यों आरक्षण रूपी बिष वेळ देश में व्याप्त है ? क्यों जम्मू & कश्मीर के लिए अलग से संबिधान है ? क्यों भारत में समान कानून-न्याय व्यवस्था नहीं है , जबकि छद्म धर्म निरपेक्ष वादी भारत को धर्मं निरपेक्ष कहते हैं , क्यों मुस्लिम विधान के नाम से अलग से क़ानूनी आख्या है ? जब अमरनाथ-कैलाश मान सरोवर जाने के लिए कोई व्यवस्था-अनुदान नहीं तो क्यों काबा जाने के लिए राजकीय सहायता ?क्या हिन्दू होना संकीर्ण-हिंसक या पाप है ,जो इस देश में हिन्दू-हिंदुत्व कहने पर उसे राजनैतिक अश्प्रस्य करार दिया जाता है ? नरेन्द्र मोदी राष्ट्र-भक्त या भारत सम्मान क्यों नहीं है जो उसे भारत में व विदेशों के द्वारा भी अपमानित कराया जाता है , जबकि मोदी आज एक मात्र राजनैतिक व्यक्तित्व है जिसका मेरे द्वारा उल्लेख उसके राष्ट्र निष्ठां कार्यों-सेवा से हो ही जाता है ? क्यों कर देश में साधू-संतों के नाम पर बहिरुपिये नाना भांति के स्वांग रच कर जन-मानष को लूट/खा रहे है ? मित्रो इसका एक ही कारण है परतंत्रता ! अभी हममें परतंत्रता वाकी है , आवश्यकता है जन-चेतना की ,एक और धर्मं युद्ध की -एक और "महाभारत" की !
!!स्वीट राधिका राधे-राधे!!
मित्रो, यदि ये सब पढ़कर आपका लहू राष्ट्र एवं धर्मं सेवा के लिए उबलता हो , आपकी मति राष्ट्र एवं धर्मं सेवा की दिशा में सोचती है-कुछ सेवा की उत्सुक है तो सर्व प्रथम इस नोट को अपने सभी मित्रों-परिचितों को पोस्ट करें तथा राष्ट्र एवं धर्मं सेवा ब्लॉग "राधे-राधे" से जुड़ें व फोलो करें, ब्लॉग ऐड्रस निम्नांकित लिंक पर क्लिक करें !
harekrishna !!
my country-my wishes
shri ram charit manas
hindutwa
shrimad bhagavat maha puranam
RADHIKA
राधे-राधे..हरेकृष्ण
jay mahakal jay vishwanath !
ReplyDeletejay baidhya nath jay som nath !!
jay mamleshwar jay rameshwar !
jay ghrishneshwar kedar nath !!
jay nageshwar jay trayambakeshwar !
jay gopeshwar pashupati nath !!
jay bhuteshwar jay asheshwar !
jay rangeshwar jay adi nath !!
jay mahabaleshwar jay mahadev !
jay panch madeshwar jay gauri nath !!
jay vishwambhar jay digamvar !
jay jagat pita aru jagat mat !!
audhar dani jay ashutosh !
karunavatar jay bhut nath !!
jay-jay shambhu-jay-jay shiva ji !
jay-jay shankar jay uma nath !!
jay gauri pati kailash vasi !
jay amar nath jay bhakt nath
shri radhey -radhey
har-har mahadev
*गोविन्द दामोदर स्तोत्रं*
ReplyDelete-राधे-राधे-श्याम सुन्दर-
करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।
दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
जिह्वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
जिह्वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
त्वामेव याचे मन देहि जिह्वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
जिह्वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
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*स्वीट राधिका-राधे-राधे*
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